भीड़ है भय है भयावह भागते भैसों की रौंद
Poetry
एक ने शुरुआत की और दूसरे नेनतीज़े तक पहुँचाया एक ही के अनेक रूप हैंचढ़ता और उतरता ताप […]
अपने सुनने पर विश्वास न करोअपने देखने पर विश्वास न करोतुम्हें अंधकार दिखता हैमगर शायद वह रोशनी है […]
भगत सिंह तुम इनके लिए सरदार होभगत हो और सिंह भी मगरभगत सिंह नहीं इन्हें क्या लेना तुमसे […]
अब सब कुछ ऐतिहासिक हैक्योंकि मैं ही इतिहास हूँअब तक समय प्यासा थाऔर मैं उसकी प्यास हूँ झाँक […]
गोरख पाण्डेय की एक बेहतरीन छोटी कविता “तुम्हे डर है” में कुछ लाइनें जोड़ने की गुस्ताखी कर रहा […]
पंख पंछियों के फैले क्यारियों में ऐसेक्या किसी साँप या और किसीजानवर की करतूत है हवा की खामोशी […]
साथी त्रेपन सिंह चौहान के लिए* तुम पहाड़ होकठोर होमगर स्रोतों की शीतलतातुम्हारी धमनियों में बहतीतुम्हारी हजार आंखों […]
नीचे कुछ और नीचेअभी और नीचे गिरना हैदिमाग क्यों खराब करोथमने की बात सोचकर खुद ब खुद तल […]
एक ही रंग में रंग गया सब कुछ गोरा हो या काला राजा जो मतवाला है सो सारा […]