उबलने तो दो इसे 


तुम अपनी चाय कड़क चाहते हो ना
तो इतनी जल्दी में क्यों हो
जरा उबलने तो दो
सब्र करो

समय–समय पर
चूल्हे से पतीले को हटाना
फिर चम्मच से चाय को चखना
बेकार है

रही सही गर्मी भी इसकी निकाल देते हो
अपनी बेसब्री में

बाहर कड़ाके की सर्दी है
और तुम चाहते हो कड़क चाय
तो उबलने तो दो इसे

तब तक चूल्हे के पास बैठ
ताप सेंको
अपने में कुछ गर्मी लाओ
खूब–खूब सुनो
कुछ तुम भी बतियाओ
और इंतजार करो
चाय के उबलने का

फिर देखो
चाय–चीनी
दूध–पानी
आग के कमाल को
चाय के उबाल को

Capitalism, law and surplus population – in the context of the Mundka incident


Industrial accidents are a necessary condition of the capitalist economy, that is, their possibility is an integral part of capitalist life. Their occurrence can be avoided to some extent by legal-administrative reforms and vigilance. There are limits to these reforms, however. The Mundka incident, on the one hand, exemplifies corruption and non-compliance of the law (which attracts the most attention of the well-wishers), and on the other, it is primarily a manifestation of the organic brutality of capitalist industrial life. This brutality reflects the dispensability of individuated workers in an environment of continuous surplusing.

मांगपत्र


मांग का एक लंबा सा चिट्ठा
तैयार किया यह सोचकर
कि जब नहीं मिलेगा तो वे समझ जाएंगे
कि मांगने से कुछ नहीं मिलता

वे तो समझ चुके हैं कि तुम नहीं समझे हो
कि वे जानते हैं
कि मांगने से कुछ नहीं मिलता

और तुमसे उम्मीद करते हैं
कि तुम मंगवाने की आदत छोड़कर
उनके साथ करोगे तैयार
विचार और हथियार
नया संसार

कोरोना का पार्श्व-असर


अस्पताल में बेड की कमी
आक्सिजन की कमी
दवाइयों की अनुपलब्धि

स्वास्थ्य उद्योग के व्यापारिक हितों द्वारा
मरीजों और उनके परिवारों का दोहन
महंगी और गलत दवाइयों के पार्श्व-असर
ब्लैक फंगस का फैलना

शमशान घाट में जगह और जलावन की कमी
नदियों में तैरती लाशें

घर लौटते बेरोजगार प्रवासियों को मुर्गा बना
उनको रसायनों से नहलाना
उनका रेलगाड़ी से पटरी पर कटना

और भुखमरी

— यह थी 2020-21 के संकट की कहानी
जिसे अवसर बनाया गया
विकास का

जिसकी सीढ़ी पर चढ़ कर
बन गए अंबानी-अडानी
विश्व भर के अमीरों के अग्रणी

कोरोना का पार्श्व-असर
आज की ताजा खबर
संकट में है अवसर
आज भारत हो गया है धनी!

अधिनायक के गुण — बर्तोल्त ब्रेष्ट


अधिनायक साधारण फार्म हाउस में रहता है
बेहतर होता अगर सम्राट नीरो की तरह महल में रहता
और मेहनतकश आवाम के सिर पर छत होते।

अधिनायक माँस नहीं खाता
बेहतर होता कि वो दिन में सात बार खाता
और मेहनतकश आवाम को दूध मयस्सर होता।

अधिनायक पीता नहीं है
बेहतर होता हर रात सड़कों पर वह पीकर धुत्त रहता
और अपनी मदहोशी में वह सच बकता।

अधिनायक भोर से लेकर देर रात तक काम करता है
बेहतर होता अगर वह बेकार कहीं पड़ा रहता
तब ये दमनकारी कानून कभी नहीं बनते।

(बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता “Die Tugenden des Kanzlers” का अनुवाद। यहाँ Kanzler (चांसलर) का अनुवाद साधारणीकरण के हित में “अधिनायक” किया गया है। )

किससे ये डरती है?


बड़ी ही कमजोर ये सरकार है

किससे ये डरती है?
उससे
जो रोज़ मरती है?

सत्ता को जनता से डर है
सत्ता जो आती है जाती है

आना-जाना एक सतत सफर है
सत्ता को क्रिया की सततता से डर है

जनता मरती है,
फिर भी जनता अमर है
इसीलिए सत्ता को डर है!

राजा का डर – पास्कल


महान फ्रांसीसी दार्शनिक और गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल की पुस्तक पौंसे (Pensees) के एक अनुच्छेद का अनुवाद

राजाओं को आदतन सिपाहियों, नगाड़ों, अफसरों और अन्य चीजों के साथ देखा जाता है जिनसे आदर और डर की भावनाएँ जागृत होती हैं – इस तथ्य का नतीजा यह होता है कि जब कभी-कभी वे अकेले और बिना किसी के साथ पाए जाते हैं, तो उनकी मुखाकृति ही काफी होती है प्रजा में आदर और भय पैदा करने के लिए, क्योंकि हम उनके व्यक्तित्व और परिचारक-वर्ग, जिसके साथ वे साधारणतया जोड़ कर देखे जाते हैं, के बीच मानसिक अंतर नहीं करते। और संसार जो नहीं जानता है कि यह आदत का असर है सोचता है कि यह किसी प्राकृतिक शक्ति से प्राप्त है, तभी तो इस तरह की कहावतें मिलती हैं – “उसके चेहरे पर ही दैविकता की छाप है”।

भीड़


भीड़ है भय है भयावह
भागते भैसों की रौंद

नया पहर?


एक ने शुरुआत की और दूसरे ने
नतीज़े तक पहुँचाया

एक ही के अनेक रूप हैं
चढ़ता और उतरता

ताप

ये पहर सुबह से क्या दोपहर से भी
अलग नज़र आया
हर पहर देख मन भरमाया और फिर
फिर वही

क्या नया पहर आया?

…शायद वह रोशनी है


अपने सुनने पर विश्वास न करो
अपने देखने पर विश्वास न करो
तुम्हें अंधकार दिखता है
मगर शायद वह रोशनी है

बर्तोल्त ब्रेष्ट