इस कविता को पहले की कविता “हमारा प्यार” के साथ पढ़ा जा सकता है। परंतु पाठक के लिए कोई बंधन नहीं है, बस प्यार ही है। जैसे पढ़ना चाहें आप पढें…
शाश्वत तो कुछ भी नही
वो तो परमब्रह्म है
जो है मगर है भी नही
घर्षण है
वहीं आकर्षण है
प्यार उसका रूप है
जैसे छाँव है धूप है
आज है कल है
एक है अनेक है
जैसे गीत में टेक है
टकराव में ही ज्वाल है
प्यार का ताल है
जाड़े की रात में
साथ होना है
कस के
पकड़ के सोना है
अवलंबन है
सहावलंबन है
प्यार है जीवन है
प्यार ही तो जीवन है
मथ कर जीवन को
पाया संजीवन है
प्यार ही संजीवन है
(२१/९/१९)
✍️🍂🙏
🙏🙏
👌👌