अंधकार समय में क्रांतिकारी परिवर्तनगामी व्यवहार के स्वरूपों पर जर्मन कवि और नाटककार बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की समझ आज भी हमारे लिए सटीक है। उनकी एक लघु कविता ये भी है:
ज्यादा न बोलो कि तुम सही हो, गुरू जी।
विद्यार्थियों को भी जानने दो उसे।
सच्चाई इतनी पेलने की ज़रूरत नहीं है:
ये उसके लिए अच्छा नहीं।
बोलते हुए तुम सुना भी करो!