साथ रहना, डूबना मत मछलियों जैसे
कहीं नींद में तुम।
बहते रहो रात भर समुन्दर के साथ,
मत बिखरना बारिशों की तरह।
जो बसंत हम खोजते हैं
यहीं कहीं छुपा है धुंध में।
देखो रात जगमगाती साथ चलती है,
दीपक अभी भी जागता है सोने की अपनी थाली में।
कहीं ज़मीन के दरारों में बिखरे पारों की तरह मत खोना।
जब चाँद नज़र आए तब देखना तुम।