जो तुम्हारे हाथ से चला गया वो चला गया
जो अभी जा रहा है वो अभी गया नहीं
वामनों की भीड़ लगी
मोहिनी भी मस्त चली
उन्हें इंतजार है तुम्हारे खोने का
मानने का सोने का
मंत्रोच्चारणों से गूंज रहे
दिनरात मंदिरों के प्रांगण
देवों की बारात सजी
आज तुम्हारे आंगन
जो तुम्हारे हाथ से चला गया वो चला गया
जो अभी जा रहा है वो अभी गया नहीं
वामनों की भीड़ लगी
मोहिनी भी मस्त चली
उन्हें इंतजार है तुम्हारे खोने का
मानने का सोने का
मंत्रोच्चारणों से गूंज रहे
दिनरात मंदिरों के प्रांगण
देवों की बारात सजी
आज तुम्हारे आंगन
तुम अपनी चाय कड़क चाहते हो ना
तो इतनी जल्दी में क्यों हो
जरा उबलने तो दो
सब्र करो
समय–समय पर
चूल्हे से पतीले को हटाना
फिर चम्मच से चाय को चखना
बेकार है
रही सही गर्मी भी इसकी निकाल देते हो
अपनी बेसब्री में
बाहर कड़ाके की सर्दी है
और तुम चाहते हो कड़क चाय
तो उबलने तो दो इसे
तब तक चूल्हे के पास बैठ
ताप सेंको
अपने में कुछ गर्मी लाओ
खूब–खूब सुनो
कुछ तुम भी बतियाओ
और इंतजार करो
चाय के उबलने का
फिर देखो
चाय–चीनी
दूध–पानी
आग के कमाल को
चाय के उबाल को
अस्पताल में बेड की कमी
आक्सिजन की कमी
दवाइयों की अनुपलब्धि
स्वास्थ्य उद्योग के व्यापारिक हितों द्वारा
मरीजों और उनके परिवारों का दोहन
महंगी और गलत दवाइयों के पार्श्व-असर
ब्लैक फंगस का फैलना
शमशान घाट में जगह और जलावन की कमी
नदियों में तैरती लाशें
घर लौटते बेरोजगार प्रवासियों को मुर्गा बना
उनको रसायनों से नहलाना
उनका रेलगाड़ी से पटरी पर कटना
और भुखमरी
— यह थी 2020-21 के संकट की कहानी
जिसे अवसर बनाया गया
विकास का
जिसकी सीढ़ी पर चढ़ कर
बन गए अंबानी-अडानी
विश्व भर के अमीरों के अग्रणी
कोरोना का पार्श्व-असर
आज की ताजा खबर
संकट में है अवसर
आज भारत हो गया है धनी!
अधिनायक साधारण फार्म हाउस में रहता है
बेहतर होता अगर सम्राट नीरो की तरह महल में रहता
और मेहनतकश आवाम के सिर पर छत होते।
अधिनायक माँस नहीं खाता
बेहतर होता कि वो दिन में सात बार खाता
और मेहनतकश आवाम को दूध मयस्सर होता।
अधिनायक पीता नहीं है
बेहतर होता हर रात सड़कों पर वह पीकर धुत्त रहता
और अपनी मदहोशी में वह सच बकता।
अधिनायक भोर से लेकर देर रात तक काम करता है
बेहतर होता अगर वह बेकार कहीं पड़ा रहता
तब ये दमनकारी कानून कभी नहीं बनते।
(बर्तोल्त ब्रेष्ट की कविता “Die Tugenden des Kanzlers” का अनुवाद। यहाँ Kanzler (चांसलर) का अनुवाद साधारणीकरण के हित में “अधिनायक” किया गया है। )
बड़ी ही कमजोर ये सरकार है
किससे ये डरती है?
उससे
जो रोज़ मरती है?
सत्ता को जनता से डर है
सत्ता जो आती है जाती है
आना-जाना एक सतत सफर है
सत्ता को क्रिया की सततता से डर है
जनता मरती है,
फिर भी जनता अमर है
इसीलिए सत्ता को डर है!
भीड़ है भय है भयावह
भागते भैसों की रौंद
एक ने शुरुआत की और दूसरे ने
नतीज़े तक पहुँचाया
एक ही के अनेक रूप हैं
चढ़ता और उतरता
ताप
ये पहर सुबह से क्या दोपहर से भी
अलग नज़र आया
हर पहर देख मन भरमाया और फिर
फिर वही
क्या नया पहर आया?
अपने सुनने पर विश्वास न करो
अपने देखने पर विश्वास न करो
तुम्हें अंधकार दिखता है
मगर शायद वह रोशनी है
बर्तोल्त ब्रेष्ट
भगत सिंह तुम इनके लिए सरदार हो
भगत हो और सिंह भी मगर
भगत सिंह नहीं इन्हें क्या लेना तुमसे
तुम्हें भी प्रतीक बना लटका देते हैं
दीवारों पर कहीं चुनवा कर लिखवा देते हैं
फलां तारीख जन्म और निधन
तुम उनके लिए बस सरदार हो
जिन्हें इंसान को भीड़ बना
भेड़ की तरह हांकना है
तुम भगत हो उनके लिए जिन्हें
बुतों को दूध पिला तत्पर रहना है
सरदार के इशारे पर मारना और मरना है
तुम सिंह हो जिसकी मूर्ति को
सिंहासन पर तराश दिया है ताकि
तुम्हारा यश मुकुट बन जाए बैठने वाले पर
मगर तुम सिंह हो सत्ता के श्वान नहीं
जंजीर कब तक बांधेगी तुम्हें
इसका इन्हें बिल्कुल भी भान नहीं
तुम्हारी दुनिया इस दीवार के पार है
तुम्हारी आत्मा के आगे हरेक सत्ता तार तार है
इन्हें क्या पता तुम्हारी दुश्मन यही दीवार है
प्रत्यूष चंद्र
28/09/2020
अब सब कुछ ऐतिहासिक है
क्योंकि मैं ही इतिहास हूँ
अब तक समय प्यासा था
और मैं उसकी प्यास हूँ
झाँक लो मेरे मुंह के अंदर
अतीत की सड़ाँध वर्तमान
की कायरता और भविष्य से
सरपट दौड़ता आता तूफान
सब कुछ है मुझमें मुझसे ही
पाती है ऊर्जा भौतिक रूप
सब मेरी ही माया है बस
मैं ही हूँ जो बिल्कुल अनूप
जो पूछते हैं मुझसे मेरा नाम
कर दिया है तय उनका काम
या वे मुझमें खुद ही समा जाएँ
या उनके सत्य का होगा राम नाम
कलियुग का हूँ महामानव मैं
पश्चात क्या पश्चात्ताप क्या
युगों का मैं अंत हूँ अनंत हूँ
यही होना था तो विलाप क्या