आज़ादी


तेज हवाएँ पत्ते झाड़ते हैं बंधनों को
जो बाँधते हैं उन्हें तने हुए वृक्षों से
काठो-र सुरक्षा तोड़ कर क्षणिक
उड़ान भरने की असुरक्षित आज़ादी

यह क्या है उत्सव है या शहादत है
या कोई अचानक उठती बगावत है
विप्लव का आगाज़ है नवीनता का
प्रसव बेशक यह व्यवस्था की बर्बादी

कविताओं में कंकड़


कविताओं में वे भी हैं जो कहे से इतर हैं
यानी अनकही चीजें जिन्हें आप कहते नहीं
मगर उनके नहीं कहने में ही वे आ जाती हैं

हम जो कहते हैं वे तो बस बिंदु हैं
जिन्हें ध्यान रखकर दिशाओं का आकलन करते हैं

या फिर रेखाएं हैं जिनसे हम
सच्चाई की ज़मीन पाटते हैं
उसे कहने लायक बनाते हैं

या फिर ढांचे हैं जिनमें हम सच्चाई को बांधते हैं
और बताते हैं कि यही सच्चाई है और कुछ भी नहीं

मगर नहीं वे मामूली कंकड़ हैं
जिन्हें हम फेंक दें और इंतजार करें
आम के गिरने का किसी पक्षी के उड़ने का
ठहरे हुए पानी में सिहरन का
बहते हुए पानी में बहने का
पत्तों के झुरमुट से चाँद के निकलने का

सच्चाई नहीं
सच्चाई के बदलने का

छायाओं की दुनिया


जर्मन कवि हंस मागनुस एंजेंसबेर्गर की कविता “Schattenreich” का अनुवाद

यहाँ अब भी मुझे एक जगह दिखती है,
एक खाली जगह,
यहाँ छाया में ।

यह छाया,
बिकाऊ नहीं है ।

समुन्दर भी
शायद छाया बनाता है,
समय भी ।

छायाओं की लड़ाइयाँ
खेल हैं:
कोई छाया
किसी दूसरे की रोशनी में नहीं रहती।

जो छाया में जीते हैं,
उन्हें मारना मुश्किल है।

कुछ क्षण के लिए
मैं अपनी छाया से बाहर निकलता हूँ,
कुछ क्षण के लिए।

जो रोशनी देखना चाहते हैं
उसको उसके रूप में
उन्हें आश्रय लेना होगा
छाया का।

छाया
सूर्य से भी तेज़:
आज़ादी की ठंडी छाया।

छाया में पूरी तरह
मेरी छाया गायब हो जाती है।

१०

छाया में
अभी भी जगह है।

हमें आप से सुनना है


कल Indian Express में एक वरिष्ठ पत्रकार का लेख पढ़ने के बाद

हमें आप से सुनना है
आप तो ऐसे नहीं
हम जानते हैं
इन्हें भी बता दीजिये
कि ये शांत हो जाएँ

आप इनका भला ही चाहते हैं
आपके बच्चे जिन्होंने बोलना सीखा है अभी
गालियाँ देते हैं इन्हें
अभी तो वे नादान हैं
हम जानते हैं
इन्हें भी बता दीजिये
कि ये संयम न खोएँ

ये जो बात बात पर उखड़ रहें हैं
आपके बच्चे
दिल से अच्छे हैं
आपके जैसे ही हैं
सौम्यता आएगी उनमें
शांत हो जायेंगे
ये तो हम जानते हैं
इन्हें भी बता दीजिये
कि ये भ्रांत न हों

इंतज़ार करें नए मालिकों का
उनके बड़े होने का
फिर आपकी ही तरह
न्याय देंगे
देश दुनिया देख लेंगे
संभाल लेंगे सभी कुछ
इन्हें भी
हम से ज्यादा यह किसे पता है
अब आप इन्हें भी बता ही दीजिये
कि ये शोर न करें

०७/१०/२०१९

एहतियात: यानिस रित्सोस


यानिस रित्सोस (1909-1990) यूनान के महान क्रांतिकारी कवि थे।

शायद तुम्हें अब भी अपनी आवाज़ को काबू में रखने की ज़रूरत है; –
कल, परसों, किसी समय,
जब भी झंडों के नीचे और लोग चिल्ला रहे होंगे,
तुम्हें भी चिल्लाना होगा,
मगर ध्यान रहे अपने टोप से अपनी आँखों को ढँक लेना,
अच्छी तरह,
ताकि उन्हें न दिखे कि तुम्हारी आँखें कहाँ देखती हैं,
तब भी जबकि तुम्हें मालूम है कि चिल्लाने वाले
कहीं देखते नहीं।

अंग्रेजी से अनुदित

भगत सिंह का दर्शन


तुम नास्तिक थे क्योंकि तुम्हें विश्वास नहीं था
किसी सत्ता पर और उस पर तो बिलकुल ही नहीं
जो महज़ विश्वास है सत्ता के परम होने का

भक्ति तुम्हारी शक्ति नहीं थी न तुम आसक्त थे
राष्ट्र पर न किसी व्यक्ति या महज़ आदर्श पर
टिका था तुम्हारा सपना नित्यता के भ्रम को

उड़ा देना काल को अकाल समझने वालों को
जगा देना बता देना कि समय वह धार है
जो केवल बहती-बहाती नहीं काटती भी है

२८/०९/२०१९

मुमकिन


खोए हुए हैं रास्ते हम किनारे पर खड़े हैं
इंतज़ार है कि राहगीर गुज़रेगा कोई तो
उम्मीद में बैठे हैं कि चमकेगा सितारा
आएगा फलक पर नज़र निशान कोई तो

हम हर वक्त अपने अंत के साथ खड़े हैं
जैसे धरती फटे अभी हम समा जाएँ
मौत साये की तरह हमारे साथ खड़ी है
असीम छाँव है कभी भी समा जाएँ

रात गुज़रे ओढ़ चादर हमारी शय्या
क़फ़न बन जाए तो क्या मुश्किल
जिस में खोए हैं रात भर वो दुनिया
अपनी ही हो जाए तो क्या मुश्किल

हमने कितनों को गुज़रते हुए देखा है
हम भी इस रास्ते गुज़रें ये है मुमकिन
सबके पाँव छपे हैं निशान बाकी है
हम भी उन तक पहुंच जाएँ है मुमकिन

तुम्हारी बाँहें


तुम जहाँ भी देखते हो पकड़ लेते हो
अपनी बाँहों में जकड़ लेते हो
नज़र चुराएँ तो कैसे तुम्हारी नज़रों से
हर तरफ फैलते तुम्हारे पहरों से

ब्रेष्ट, समाधि लेख 1919 (Brecht’s “Epitaph 1919”)


सुर्ख गुलाब भी अब तो गायब हुआ
कहाँ है गिरा वह दिखता नहीं
गरीबों को उसने जीना सिखाया
अमीरों ने उसको तभी तो मिटाया
(1929)

वैकल्पिक अनुवाद:

सुर्ख रोज़ा भी अब तो गायब हुई
कहाँ है गिरी वह दिखती नहीं
गरीबों को उसने जीना सिखाया
अमीरों ने उसको तभी तो मिटाया

तो प्यार क्या शाश्वत है


इस कविता को पहले की कविता “हमारा प्यार” के साथ पढ़ा जा सकता है। परंतु पाठक के लिए कोई बंधन नहीं है, बस प्यार ही है। जैसे पढ़ना चाहें आप पढें…

शाश्वत तो कुछ भी नही
वो तो परमब्रह्म है
जो है मगर है भी नही

घर्षण है
वहीं आकर्षण है
प्यार उसका रूप है
जैसे छाँव है धूप है
आज है कल है
एक है अनेक है
जैसे गीत में टेक है

टकराव में ही ज्वाल है
प्यार का ताल है

जाड़े की रात में
साथ होना है
कस के
पकड़ के सोना है

अवलंबन है
सहावलंबन है
प्यार है जीवन है
प्यार ही तो जीवन है
मथ कर जीवन को
पाया संजीवन है
प्यार ही संजीवन है

(२१/९/१९)