असली सनातन धर्म क्या है?


ॐ असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय ॥
ॐ शान्ति शान्ति शान्तिः ॥ – बृहदारण्यकोपनिषद् 1.3.28।
अर्थ
मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो।
मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो॥

असली सनातन धर्म क्या है?

जो सनातन है वह कर्म, स्थान और काल से बंधा नहीं हो सकता। जीवन चक्र से निकलने का साधन है वह — सनातन धर्म को जो इन्द्रीयता और कर्मकांड में बांधते हैं वह नहीं जानते कि वे सारे शास्त्रों का उल्लंघन कर रहे हैं। सनातन तो नेति नेति की उद्घोषणा में ही पाया जा सकता है। नाम और जड़-संज्ञा में सनातन अपने आप को व्यक्त जरूर करता है परंतु वह उन संसारियों पर हंसता है जो उसकी स्थानकालिक अभिव्यक्तियों के मोह में फंस उनपर कब्जे के लिए लड़ते रहते हैं। धम्मपद ने असली सनातन धर्म की ओर इस प्रकार इंगित किया है।

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।
ये च तं उपनय्हन्ति वेरं तेसं न सम्मति ॥3॥

‘मुझे गाली दी’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया’, ‘मुझे लुट लिया’, जो ऎसी बातें सोचते रहते हैं, मन में बांधे रहते हैं, उनका वैर कभी शान्त नही होता ।

अक्कोच्छि मं अवधि मं अजिनि मं अहासि मे ।
ये तं नुपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ॥4॥

‘मुझे गाली दी’, ‘मुझे मारा’, ‘मुझे हराया’, ‘मुझे लुट लिया’, जो ऎसी बातें मन में नही सोचते , उनका वैर शान्त हो जाता है।

न हि वेरेन वेरानि सम्मन्तीध कुदाचनं।
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्तनो ॥5॥

वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता, अवैर से ही वैर शान्त होता है, यही संसार का सनातन धर्म है ।

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