प्रेस क्लब में


क्या हो गया है इन चेहरों को जो
भिज्ञता और संयम के प्रतीक थे
कि उनके सामने फटकना
मुश्किल था आज वे ऐसे क्यों हो गए

हर बात पर तुनकते जैसे
लगता है कि इनकी आवाज़
दब रही है भीड़ में स्वयं को
देख कर घबरा से गए हैं

अपने आप को खोते उसमें जहाँ
कोई नहीं है पहचानने वाला
भीड़ है सतत एक होती
फिर बिखरती मारती मरती

बस क्या हुआ क्या हो रहा है
क्या होने वाला है यही चर्चा
कोई नहीं जानता क्यों हो रहा
सारा तर्क वितर्क खो रहा है

Advertisement

आज़ादी अगस्त 2019


भूमिका

घाटियों में धुंध से छनकर सबेरे धूप आई
अलस मन में नए दिन की आस अब लो जगमगाई
बाण चौखट पर गिरे हैं क्या नया है
रात सत्ता की उसी का सिर फिरा है
फिर कोई जागी है नीचे ज़िद नई
फरमान से ही क्या हिमाला जीत लेगी

1)

जो दीवार खड़ी थी वो ढह गई
हमें लगता था यहीं हिफाज़त है
रेत की थी हल्की बारिश में बह गई

वो समझते थे कि हम नंगे हैं
हम समझते थे कि हम नंगे हैं
मगर पर्दा हटा तो सच निकला

वही पर्दा था जो कपड़ा था
हमने ओढ़ा तुमने ओढ़ा था
वो कपड़ा काफ़ी चौड़ा था

वो अब पूरा जल गया
हम तुम्हारे सामने हैं
तुम हमारे सामने हो

2)

तुमने गुलदस्ते
से निकाल फेंका हमें
कि काँटे निकल आए थे
अच्छा ही है अब
आज़ाद हैं हम
जहाँ फेंका वहीं उगेंगे
और फैलते चले जाएंगे

3)

कागज़ों के बीच था सोता रहा सपना हमारा
अच्छा किया झाड़ा उन्हें फुर्र उड़ा सपना हमारा

4)

क्या कहूँ क्या चल रहा है
वक्त अब बस टल रहा है
हवा बदले वो कब बदले
अब बदले कि तब बदले
यही अब इंतज़ार चल रहा है

5)

संभावनाओं का सिमटना संभावनाएँ ख़त्म होना नहीं है
भविष्य साफ़ दिखना भी है और वही है
संभावनाओं के अंतहीन चक्रव्यूह में फंसकर
हमने संभावनाएँ ही टटोली सच्चाई से हमारा रिश्ता
बिरहन के गीत सा हो गया हम दर्द के नशे में झूमते रहे
हज़ारों रास्ते खुले हैं कि एक रास्ता नहीं मिलता
रास्ते अख्तियार करने की आज़ादी कोई आज़ादी नहीं है
अगर हमें पता ही न हो कहाँ जाना तो जाना कहाँ है
कोशिश की संभलने की तो हमने आत्मत्याग किया
हमने खुद को तुम्हारे या खुदा के हवाले किया
अच्छा ही है आज हम दीवार के रूबरू खड़े हैं
न पीछे मुड़ने की उम्मीद न आगे कोई रास्ता दिखे

6)

तुम्हारी दुर्दशा तुम्हारी ही नहीं है अपनी वेदना में
इतने मत बहो कि तुम्हारी लड़ाई का मतलब
तुमसे दूर हो जाए इतिहास के भार ने तुम्हें
बांध रखा था तुम्हारे सपने को वो लगाम थी
तुम्हे समय समय पर उड़ान भरते देखना
किसे नहीं भाता और दूसरों को ललचाना
बताना कितने आज़ाद हो तुम अपने बंधन में
तुम बताओ किसकी दशा ऐसी नहीं है

7)

मानचित्र में वो जगह तुम्हें खोजनी है
उन्हें नहीं जो वहाँ जीते हैं
सीमाएँ तुम्हारे दिल में हैं
उनके लिए कदम कदम फौज़ है
अपना रोज़ गुज़ारना है उन्हें
अपने हिसाब से गुज़ारें
यही उम्मीद थी उनकी
तुमने सीमाओं में बाँधा उन्हें
अपने आपको
फिर कहा माँगो
तो भला क्या माँगे
सीमाएँ ही तो
जो सीमित करेंगी तुम्हारे दायरे

सरकार है सरकार के आगे झुको: पाँच कविताएँ


महासभा

आज सूरज की तीव्रता,
आसमान के नीलेपन को ढांपते
बेमौसम कालिख कैसे पुत गई?
इतने गिद्ध और चील कहाँ से आ गए?
झोपड़ों, बहुमंजिलों और मैदानों पर मंडराते
मानो भक्षियों की विशाल महासभा हो रही है।
प्रतिनिधित्व के काँव काँव में
सड़कों और घरों की आवाजें दब गई हैं
जैसे मेजों पर रखे फाइलों के नीचे
जिंदा आदमी की ज़िन्दगी…

संसद में कविता

आज जब संसद में कविताओं की बारिश हो रही है
शब्द बेधड़क टपकते हैं
जैसे सिर पर ओले

हमें यह मान लेना चाहिये कि कविताओं के दिन लद गए
ये कविताएं नहीं नश्तर हैं
जो सीधे हमारी ओर बढ़ रहे
जहां आदमी और आदमियत
थक कर सड़ रहे

मगर इसके हर वार का जवाब हमारे पास है
हम उनके नश्तर का जवाब खाली कनस्तर से देंगे
जिनके शोर के आगे अच्छे अच्छे गामाओं को
हमने पिद्दी बनते देखा है
हमारी भूख के आगे कितने शेर को
गीदड़ बनते देखा है
भागते देखा है
अपने दुर्ग की ओर
फिर अन्दर से मुर्ग के शोर
अपना किला जगाने के लिए
बस्तियों में आग लगाने के लिए
भाइयों को लड़ाने के लिए
फिर पंचों में सरपंच बनने के लिए
कविताओं की बारिश हो रही है

नया आंदोलन

सुना है नया आंदोलन छिड़ेगा
स्वच्छता में तरलता लानी है
देवगण गाड़ियों से उतरेंगे
पेप्सी बिसलेरी रम स्कॉच के बोतलों में
अब बारिश का पानी है

बूंद बूंद बटोरेंगे
पानी राष्ट्र निर्माण के लिये बचाना है
बिसलेरी बहुत महंगा है
हम सस्ता पानी बेचेंगे
हम वैदिक पानी बेचेंगे
क्लोरीन, आर ओ की ज़रूरत नहीं
गोमूत्र काफी है
जैसे रक्त के लिए साफ़ी है

गोमूत्र हरेक के पास नहीं है तो क्या
एक बूंद उसका हर मूत्र को गोमूत्र बना देता है
तुम नहीं जानते एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है?
गजब है उसकी शक्ति
माता की शक्ति कैसी होगी
जो सारी गंदगी को मंदा करती है
गजब है उसकी शक्ति
गजब है अपनी भक्ति

वैंगार्ड

कौन कहता है कि तुम गलत हो मैं नहीं मानता
जब तक तुम दिखते थे सड़कों पर जागते और जगाते
हम सबने देखा किया तुम पर पूरा विश्वास
मसीह के समान तुम्हारी तेज़ी जो आज भी कम नहीं है
जब तुम मशीन में लद चुके हो इंतजार है हमें
कि यकायक थम जायेगा तुम्हारे दम से इसका चलना
तुममें हमने अपना अग्रज देखा तुम्हारा धैर्य
तुम्हारी चतुराई जो आज भी कम नहीं हैं
जब तुम बह गए या पिस गए मशीन ने ढाल लिया
अपने रूप में तुम्हें तुम गलत नहीं हो

सरकार है

बात बात पर निकल आते हैं खंजर
सचमुच किसी ज़ोरदार सरकार की ज़रूरत पड़ी है
जिसके हाथों में चुम्बक है
सारे खंजरों को हरेक हाथ से छीन ले
फिर करे मुद्रित जिसे चाहता करना
बाकियों को पड़ेगा मरना
सरकार है सरकार के आगे झुको
फिर करो मारने मरने का पर्व
अगर आखेट में भी मृत्यु हो
गम न कर सरकार है
मारने वाला जवां
मरने वाला आततायी या कोई हुतात्माई

प्रकाशन: जनज्वार