सत्ता के घोड़े – एक कविता


ज्ञान मानचित्र की रेखाओं को नहीं मानता
न वे उसको बांध सकते हैं
इसीलिए तो वे ज्ञान की बात नहीं करते
यान की बात करते हैं

तुम सत्ता के घोड़े हो
तुम पर लद के नई ऊँचाइयाँ चढ़ेगी वो
मिलने जाएगी चंद्रमा की बुढ़िया से
जीतने जाएगी राहु को
कहीं ग्रहण न लगा दे उसके भविष्य को
आखिर भगवान को भी माननी पड़ी उसकी शक्ति
अलग करना पड़ा उसके सिर को उसके धड़ से
मस्तिष्क को शारीरिक बल से
कहीं उखाड़ न दे देवताओं का वैभव जड़ से

भगवान को भी मानना पड़ा अमरत्व उसका
जिसने छल लिया था छलिया को
उसको जिसने छल से परिश्रमी राक्षसों के
परिश्रम को पिला दिया देवों को
जो हमेशा हारते रहे मैदानों में
भागते रहे सत्ता के वीरानों में

तभी तो डरते हैं
राहु को केतु से मिलने नहीं देते
सत्ता इसी अलगाव को ही कहते हैं

सत्ता ने तुम्हें अदना बना दिया है
तुम्हारी उड़ान को लगाम पहना दिया है
अब तुम जहाँ भी जाओगे सत्ता तुम पर लदी होगी
मिमियाते तुम खड़े होगे
सारी गलतियाँ तुम्हारे सिर होगी
और जीत उसकी
उसकी थपथपाहट तुम्हारा पारिश्रमिक
उसका पुचकारना तुम्हारा ईनाम

देश देख रहा था उस दिन
और तुम सुन रहे थे उसके मन की बात
स्कूली बच्चों की तरह
तुम्हें सिखा रही थी सत्ता
बता रही थी मतलब तुम्हें तुम्हारा
और उसकी चढ़ाइयों का

और तुम इतराते
सत्ता को अपने करीब पाते

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हम इतिहास के निरंतर निषेध


जनाजर का ज्वर अचानक
ज्वार बनकर फूटता
हर सदी इतिहास की
दीवार है जो टूटती

मैं गिरा हूँ मत उठाओ
मैं खुद उठूँगा और चला जाऊँगा
अपनी दयाभरी आँखों से मत देखो
वे रोकती हैं मुझे मैं होने से
मुझे अपनी तरह उठने और चलने से
ऐसा क्या है क्या तुम कभी गिरे नहीं
गिर कर उठे नहीं उठ कर चले नहीं
तमाशा मत बनाओ मेरे गिरने का
कि ऐसा ही मैं रह जाऊँ
सभी मुझे मेरे मैं से छीनते
हमेशा के लिए मैं दया का पात्र बन जाऊँ

मुझे अपनी लड़ाई खुद लड़ने दो
और तुम क्यों दोगे मैं लड़ूंगा
और लड़ता भी हूँ
तुम अपनी लड़ाई लड़ो
तभी यह हमारी लड़ाई होगी
तब नहीं जब तुम हमारे लिए लड़ते
शहीदों के लिस्ट में तुम्हारा नाम
दूसरों के लिए मर गए तुम कितने महान
और हम हमारी औकात ही क्या
अपनी रोज़ की लड़ाई के नीचे दब गए
उठ न पाए हम बेचारे
रह गए सड़क के किनारे

और तुम पथप्रदर्शक अधिनायक
हम जन तुम जननायक
हम भेड़ तुम गड़ेरिया
हम गायें तुम कन्हैया
लो हुए हम नाव अब तुम खेवैया
खेते खेते बन गए तुम जनक
तो हम हुए जनित तुम्हारे हल की नोंक से
सीता तुम राम
हम सुदामा तुम घनश्याम
हम द्रौपदी
हमारी लाज हो तुम
तुम आसमान में सूर्य
हम तुम्हारी असंख्य किरणें
हम माया हैं तुम्हारी छाया हैं
तुम्हारी विविधताओं के प्रदर्शन हेतु
परिपेक्ष हैं
स्थूल हैं
तुम्हारे चरणों की धूल हैं
फूल हैं

इतिहास में तुम्हारा ही नाम रहेगा
हम अगणित अदृश्य
चाहे कह दो इतिहास हमारा
जिसके नायक तुम्हीं हो
तुम्हीं रहोगे

परंतु तुम जड़ हममें जड़ित
सारी उपमाएँ हमसे फलित
इतिहास गाते रहो डुगडुगी बजाते रहो
इतिहास की गौरव गाथा तुम्हारे लिए है
इंसान का गौरव इसी में है
कि हम सारे गर्व को मिटाते रहे हैं
इतिहास हमें नही हमें आज चाहिए
हमें सुराज नहीं
हमें सु-अराज, स्वराज चाहिए
न राज्य न आसीन राजा
न दंड न कोई दांडिक
हम आदि अंकुर सतयुग से
इतिहास के निरंतर निषेध हैं

आज़ादी अगस्त 2019


भूमिका

घाटियों में धुंध से छनकर सबेरे धूप आई
अलस मन में नए दिन की आस अब लो जगमगाई
बाण चौखट पर गिरे हैं क्या नया है
रात सत्ता की उसी का सिर फिरा है
फिर कोई जागी है नीचे ज़िद नई
फरमान से ही क्या हिमाला जीत लेगी

1)

जो दीवार खड़ी थी वो ढह गई
हमें लगता था यहीं हिफाज़त है
रेत की थी हल्की बारिश में बह गई

वो समझते थे कि हम नंगे हैं
हम समझते थे कि हम नंगे हैं
मगर पर्दा हटा तो सच निकला

वही पर्दा था जो कपड़ा था
हमने ओढ़ा तुमने ओढ़ा था
वो कपड़ा काफ़ी चौड़ा था

वो अब पूरा जल गया
हम तुम्हारे सामने हैं
तुम हमारे सामने हो

2)

तुमने गुलदस्ते
से निकाल फेंका हमें
कि काँटे निकल आए थे
अच्छा ही है अब
आज़ाद हैं हम
जहाँ फेंका वहीं उगेंगे
और फैलते चले जाएंगे

3)

कागज़ों के बीच था सोता रहा सपना हमारा
अच्छा किया झाड़ा उन्हें फुर्र उड़ा सपना हमारा

4)

क्या कहूँ क्या चल रहा है
वक्त अब बस टल रहा है
हवा बदले वो कब बदले
अब बदले कि तब बदले
यही अब इंतज़ार चल रहा है

5)

संभावनाओं का सिमटना संभावनाएँ ख़त्म होना नहीं है
भविष्य साफ़ दिखना भी है और वही है
संभावनाओं के अंतहीन चक्रव्यूह में फंसकर
हमने संभावनाएँ ही टटोली सच्चाई से हमारा रिश्ता
बिरहन के गीत सा हो गया हम दर्द के नशे में झूमते रहे
हज़ारों रास्ते खुले हैं कि एक रास्ता नहीं मिलता
रास्ते अख्तियार करने की आज़ादी कोई आज़ादी नहीं है
अगर हमें पता ही न हो कहाँ जाना तो जाना कहाँ है
कोशिश की संभलने की तो हमने आत्मत्याग किया
हमने खुद को तुम्हारे या खुदा के हवाले किया
अच्छा ही है आज हम दीवार के रूबरू खड़े हैं
न पीछे मुड़ने की उम्मीद न आगे कोई रास्ता दिखे

6)

तुम्हारी दुर्दशा तुम्हारी ही नहीं है अपनी वेदना में
इतने मत बहो कि तुम्हारी लड़ाई का मतलब
तुमसे दूर हो जाए इतिहास के भार ने तुम्हें
बांध रखा था तुम्हारे सपने को वो लगाम थी
तुम्हे समय समय पर उड़ान भरते देखना
किसे नहीं भाता और दूसरों को ललचाना
बताना कितने आज़ाद हो तुम अपने बंधन में
तुम बताओ किसकी दशा ऐसी नहीं है

7)

मानचित्र में वो जगह तुम्हें खोजनी है
उन्हें नहीं जो वहाँ जीते हैं
सीमाएँ तुम्हारे दिल में हैं
उनके लिए कदम कदम फौज़ है
अपना रोज़ गुज़ारना है उन्हें
अपने हिसाब से गुज़ारें
यही उम्मीद थी उनकी
तुमने सीमाओं में बाँधा उन्हें
अपने आपको
फिर कहा माँगो
तो भला क्या माँगे
सीमाएँ ही तो
जो सीमित करेंगी तुम्हारे दायरे

सरकार है सरकार के आगे झुको: पाँच कविताएँ


महासभा

आज सूरज की तीव्रता,
आसमान के नीलेपन को ढांपते
बेमौसम कालिख कैसे पुत गई?
इतने गिद्ध और चील कहाँ से आ गए?
झोपड़ों, बहुमंजिलों और मैदानों पर मंडराते
मानो भक्षियों की विशाल महासभा हो रही है।
प्रतिनिधित्व के काँव काँव में
सड़कों और घरों की आवाजें दब गई हैं
जैसे मेजों पर रखे फाइलों के नीचे
जिंदा आदमी की ज़िन्दगी…

संसद में कविता

आज जब संसद में कविताओं की बारिश हो रही है
शब्द बेधड़क टपकते हैं
जैसे सिर पर ओले

हमें यह मान लेना चाहिये कि कविताओं के दिन लद गए
ये कविताएं नहीं नश्तर हैं
जो सीधे हमारी ओर बढ़ रहे
जहां आदमी और आदमियत
थक कर सड़ रहे

मगर इसके हर वार का जवाब हमारे पास है
हम उनके नश्तर का जवाब खाली कनस्तर से देंगे
जिनके शोर के आगे अच्छे अच्छे गामाओं को
हमने पिद्दी बनते देखा है
हमारी भूख के आगे कितने शेर को
गीदड़ बनते देखा है
भागते देखा है
अपने दुर्ग की ओर
फिर अन्दर से मुर्ग के शोर
अपना किला जगाने के लिए
बस्तियों में आग लगाने के लिए
भाइयों को लड़ाने के लिए
फिर पंचों में सरपंच बनने के लिए
कविताओं की बारिश हो रही है

नया आंदोलन

सुना है नया आंदोलन छिड़ेगा
स्वच्छता में तरलता लानी है
देवगण गाड़ियों से उतरेंगे
पेप्सी बिसलेरी रम स्कॉच के बोतलों में
अब बारिश का पानी है

बूंद बूंद बटोरेंगे
पानी राष्ट्र निर्माण के लिये बचाना है
बिसलेरी बहुत महंगा है
हम सस्ता पानी बेचेंगे
हम वैदिक पानी बेचेंगे
क्लोरीन, आर ओ की ज़रूरत नहीं
गोमूत्र काफी है
जैसे रक्त के लिए साफ़ी है

गोमूत्र हरेक के पास नहीं है तो क्या
एक बूंद उसका हर मूत्र को गोमूत्र बना देता है
तुम नहीं जानते एक मछली पूरे तालाब को गंदा करती है?
गजब है उसकी शक्ति
माता की शक्ति कैसी होगी
जो सारी गंदगी को मंदा करती है
गजब है उसकी शक्ति
गजब है अपनी भक्ति

वैंगार्ड

कौन कहता है कि तुम गलत हो मैं नहीं मानता
जब तक तुम दिखते थे सड़कों पर जागते और जगाते
हम सबने देखा किया तुम पर पूरा विश्वास
मसीह के समान तुम्हारी तेज़ी जो आज भी कम नहीं है
जब तुम मशीन में लद चुके हो इंतजार है हमें
कि यकायक थम जायेगा तुम्हारे दम से इसका चलना
तुममें हमने अपना अग्रज देखा तुम्हारा धैर्य
तुम्हारी चतुराई जो आज भी कम नहीं हैं
जब तुम बह गए या पिस गए मशीन ने ढाल लिया
अपने रूप में तुम्हें तुम गलत नहीं हो

सरकार है

बात बात पर निकल आते हैं खंजर
सचमुच किसी ज़ोरदार सरकार की ज़रूरत पड़ी है
जिसके हाथों में चुम्बक है
सारे खंजरों को हरेक हाथ से छीन ले
फिर करे मुद्रित जिसे चाहता करना
बाकियों को पड़ेगा मरना
सरकार है सरकार के आगे झुको
फिर करो मारने मरने का पर्व
अगर आखेट में भी मृत्यु हो
गम न कर सरकार है
मारने वाला जवां
मरने वाला आततायी या कोई हुतात्माई

प्रकाशन: जनज्वार