नागपुर के साथियों का पर्चा
9 अगस्त 2020
चलिए अच्छा है, देर आए दुरुस्त आए! कम से कम संगठनों ने अपना मानसिक लौकडाउन तो तोड़ा। जब प्रवासी मज़दूर सड़कों पर सरकारी अमानवीयता के खिलाफ खुली बगावत कर घर वापस जाते दिख रहे थे, भूख, बदहाली और मौत से लड़ रहे थे, तब इन संगठनों का नेतृत्व बयानबाज़ी और तख्तियों पर नारे और माँगें लिख फ़ोटो खिंचवा इंटरनेट पर एक दूसरे को भेज रहा था। और अब जब सरकार ने लौकडाउन हटाया है तो इन्होंने भी पिछले एक महीने से अपनी गतिविधियाँ बढ़ाईं हैं। इससे इतना तो साफ है कि इन संगठनों की गतिविधियाँ सरकारी गतिविधियों के साथ ही जुगलबंदी करती हैं।
ऐसे भी व्यवस्था ने अपने कानूनी प्रावधानों की पोथियों से इनके हाथ-पाँव में बेड़ियां लगा दी है, और इनके संघर्षशील तेवर को कुंद कर दिया है। जब कोर्ट-कचहरी और मांग के दायरे में ही इनकी पूरी शक्ति चली जाती है, तो ये मज़दूरों के…
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