लक्ष्मण बारबार रेखाएँ खींचता है मगर सीता
लांघ देती है उन रेखाओं को नए के अनुराग में
राम का रोष नई चढ़ाइयाँ चढ़ता है सीता के लिए
और सीता को बारबार अग्निपरीक्षा देनी होती है
साबित करनी होती है अपनी पवित्रता कि आज भी
है व्रता वो राम के स्वामित्व की कदमों की दासी
क्या गुदगुदी होती है पृथ्वी को जब जमीन पर
रेखाएँ बनाते हैं ये लोग और मिटाते हैं कुछ और
हँसी तो ज़रूर आती होगी इस खेल को देख कर
आसमान भी कहता होगा ये कौन सा खेल खेलते हैं
सदियों से कितनी बार रेखाएं बदलीं और खून से
सनी मिट्टी क्या मज़ा इस खेल में आता है इनको
Kya khoob likha hai apne