भूमिका
घाटियों में धुंध से छनकर सबेरे धूप आई
अलस मन में नए दिन की आस अब लो जगमगाई
बाण चौखट पर गिरे हैं क्या नया है
रात सत्ता की उसी का सिर फिरा है
फिर कोई जागी है नीचे ज़िद नई
फरमान से ही क्या हिमाला जीत लेगी
1)
जो दीवार खड़ी थी वो ढह गई
हमें लगता था यहीं हिफाज़त है
रेत की थी हल्की बारिश में बह गई
वो समझते थे कि हम नंगे हैं
हम समझते थे कि हम नंगे हैं
मगर पर्दा हटा तो सच निकला
वही पर्दा था जो कपड़ा था
हमने ओढ़ा तुमने ओढ़ा था
वो कपड़ा काफ़ी चौड़ा था
वो अब पूरा जल गया
हम तुम्हारे सामने हैं
तुम हमारे सामने हो
2)
तुमने गुलदस्ते
से निकाल फेंका हमें
कि काँटे निकल आए थे
अच्छा ही है अब
आज़ाद हैं हम
जहाँ फेंका वहीं उगेंगे
और फैलते चले जाएंगे
3)
कागज़ों के बीच था सोता रहा सपना हमारा
अच्छा किया झाड़ा उन्हें फुर्र उड़ा सपना हमारा
4)
क्या कहूँ क्या चल रहा है
वक्त अब बस टल रहा है
हवा बदले वो कब बदले
अब बदले कि तब बदले
यही अब इंतज़ार चल रहा है
5)
संभावनाओं का सिमटना संभावनाएँ ख़त्म होना नहीं है
भविष्य साफ़ दिखना भी है और वही है
संभावनाओं के अंतहीन चक्रव्यूह में फंसकर
हमने संभावनाएँ ही टटोली सच्चाई से हमारा रिश्ता
बिरहन के गीत सा हो गया हम दर्द के नशे में झूमते रहे
हज़ारों रास्ते खुले हैं कि एक रास्ता नहीं मिलता
रास्ते अख्तियार करने की आज़ादी कोई आज़ादी नहीं है
अगर हमें पता ही न हो कहाँ जाना तो जाना कहाँ है
कोशिश की संभलने की तो हमने आत्मत्याग किया
हमने खुद को तुम्हारे या खुदा के हवाले किया
अच्छा ही है आज हम दीवार के रूबरू खड़े हैं
न पीछे मुड़ने की उम्मीद न आगे कोई रास्ता दिखे
6)
तुम्हारी दुर्दशा तुम्हारी ही नहीं है अपनी वेदना में
इतने मत बहो कि तुम्हारी लड़ाई का मतलब
तुमसे दूर हो जाए इतिहास के भार ने तुम्हें
बांध रखा था तुम्हारे सपने को वो लगाम थी
तुम्हे समय समय पर उड़ान भरते देखना
किसे नहीं भाता और दूसरों को ललचाना
बताना कितने आज़ाद हो तुम अपने बंधन में
तुम बताओ किसकी दशा ऐसी नहीं है
7)
मानचित्र में वो जगह तुम्हें खोजनी है
उन्हें नहीं जो वहाँ जीते हैं
सीमाएँ तुम्हारे दिल में हैं
उनके लिए कदम कदम फौज़ है
अपना रोज़ गुज़ारना है उन्हें
अपने हिसाब से गुज़ारें
यही उम्मीद थी उनकी
तुमने सीमाओं में बाँधा उन्हें
अपने आपको
फिर कहा माँगो
तो भला क्या माँगे
सीमाएँ ही तो
जो सीमित करेंगी तुम्हारे दायरे